Campus Adda| दसवीं कक्षा के बोर्ड परीक्षा रद्द किए जाने के बाद आंतरिक मूल्यांकन के आधर पर छात्रों को अंक दिए जाने की नीति में संशोधन की मांग पर उच्च न्यायालय ने बुधवार को केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। न्यायालय ने इस मामले में केंद्र व दिल्ली सरकार से भी जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश डी.एन. पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने सभी पक्षों को 4 सप्ताह में जवाब देने को कहा है। पीठ ने गैर सरकारी संगठन जस्टिस फॉर आल की ओर से अधिवक्ता खगेश झा और शिखा बग्गा द्वारा दाखिल याचिका पर यह आदेश दिया है। याचिका सीबीएसई द्वारा 10वीं कक्षा के छात्रों के आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर अंक देने की नीति ( अंक देने के लिए टेबुलेशन मार्क्स पॉलिसी) पर सवाल उठाया है। अधिवक्ता खगेश झा ने पीठ को बताया कि सीबीएसई द्वारा तय नीति के हिसाब से इस बार 10वीं के छात्रों को पिछले तीन साल में बच्चों के प्रदर्शन के औसत के हिसाब से ही उस स्कूल के छात्रों को अधिकतम अंक मिलेगा। अधिवक्ता ने पीठ को बताया कि मान लिया लीजिए कि किसी स्कूल के बच्चों को पिछले तीन साल में अधिकतम 95 फीसदी तक अंक मिले तो उस स्कूल के छात्रों को इस बार भी 95 फीसदी तक अंक मिलेगा। लेकिन पिछले तीन साल में किसी स्कूल के छात्रों को 70 फीसदी अंक ही मिला है तो इस साल उस स्कूल के छात्र कितने भी मेधावी क्यों नहीं हो, उनको इससे अधिक अंक नहीं मिलेगा। याचिका में सीबीएसई द्वारा जारी इस नीति को भेदभावपूर्ण बताते हुए इसमें संशोधन करने का आदेश देने की मांग की है। अधिवक्ता शिखा बग्गा ने पीठ को बताया कि किसी स्कूल के पहले के छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर मौजूदा छात्रों की तुलना नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि यदि पहले के बच्चों ने परीक्षा में बेहतर परिणाम नहीं ला पाएं हैं, तो इस बार के बच्चे भी बेहतर नहीं करेंगे।
बच्चों को पता नहीं कि अंक देने का आधार क्या होगा
याचिका में कहा गया है कि सीबीएसई द्वारा तैयार नीति में पारदर्शिता नहीं है। साथ ही कहा है कि इसमें बच्चों को पता ही नहीं है कि अंक देने का आधार क्या होगा। अधिवक्ता ने पीठ ने कहा कि स्कूल को अंक देने का आधार सिर्फ सीबीएसई को बताने को कहा है,जबकि बच्चों को पहले से पता होना चाहिए कि उन्हें किस आधार पर अंक दिया जाएगा।
कोई शिकायत का प्रणाली नहीं
याचिका में कहा गया है कि इस नीति के तहत यदि कोई छात्र अपने अंकों से संतुष्ट नहीं है तो वहां इसकी कहां शिकायत करेगा, इसके लिए सीबीएसई ने कोई प्रणाली या शिकायत निवारण तंत्र नहीं बनाया है। साथ ही कहा है कि मौजूदा नीति के तहत यदि भूलवश किसी शिक्षक ने किसी छात्र का गलत अंक चढ़ा दिया है तो उसमें सुधार की कोई गुंजाईश नहीं।
उन स्कूलों को क्या होगा जहां से पहली बार बच्चे दे रहे थे दसवीं कक्षा के परीक्षा
अधिवक्ता खगेश झा ने पीठ को बताया कि अंक देने के लिए सीबीएसई द्वारा जारी नीति से उन स्कूलों को काफी परेशानी होगी, जिनमें पहली बार बच्चे 10वीं कक्षा के परीक्षा देने वाले थे। उन्होंने कहा कि ऐसे स्कूलों को पूरे जिले के स्कूलों को डेटा जमा करना होगा और उसके आधार पर अंक देना होगा जो कि पूरी तरह से अनुचित है। साथ ही कहा कि यदि छोटे शहरों के स्कूलों में पिछले तीन साल में 50 फीसदी से अधिक बच्चे अनुतीर्ण हो गए हैं तो क्या इस साल वहां के 50 फीसदी बच्चे को अनुतीर्ण कर दिया जाएगा।
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